भा.कृ.अ.प. - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान | ICAR-Indian Agricultural Research Institute
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कृषि रसायन संभाग की स्थापना वर्ष 1966 में की गई थी यह वही समय था जब भारत सरकार कीटनाशक नीति तैयार करने और कीटनाशक अधिनियम लागू करने की प्रक्रिया में थी। तभी से कृषि रसायन संभाग परस्पर कृषि रसायनों और विशेष रूप से फसल सुरक्षा रसायनों से संबंधित अधिकाधिक ज्ञान एवं जानकारी का सृजन करने के लिए प्रयत्नशील है जिसका प्रयोग राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्धारण एवं किसान कल्याण के लिए किया जा सके। संभाग ने कृषि रसायनों के विकास, सूत्रीकरण एवं सुरक्षा से जुड़े विभिन्न पहलुओं में अपने योगदान के चलते फ़सल सुरक्षा के क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिको के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है। अपनी इस यात्रा में संभाग ने विभिन्न पीडकनाशियों, कीटनाशक सहायकों, एसेंशियल आयल आधारित फसल संरक्षण उत्पादों, सुपरअवशोषक हाइड्रोजैल, नाइट्रीकरण अवरोधी रसायनों, रासायनिक हाइब्रिडाइजिंग एजेंटो, न्यूट्रास्यूटिकल्स, पौध विकास नियामकों, स्मार्ट कृषि-इनपुट वितरण प्रणालीयों, एम्फीफिलिक कॉपोलिमर आधारित नैनो सूत्रणों एवं अन्य नैनो तकनीक आधारित कृषि रसायन उत्पादों, आधुनिक कीटनाशक अवशेष विश्लेषण पद्धितियों का विकास किया है।
सिंथेटिक पाइन तेल, कीटनाशक सहायको, एसेंशियल आयल-आधारित उत्पादों, नीम कीटनाशकों, नैनो सूत्रीकरणों, हाइड्रोजैल एवं न्यूट्रास्यूटिकल्स पर किये गये अनुसंधान के फलस्वरूप इन प्रौद्योगिकियों से संबंधित लगभग 30 औद्योगिक लाइसेंस संभाग को प्राप्त हुए है। जिससे संभाग को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक पहचान प्राप्त हुई है। संभाग ने प्रयोगशाला में पीड़कनाशी गतिविधि दर्शाने वाले अनेक अणुओं का निर्माण किया है जिनका वैज्ञानिक विधि से व्यापक परिक्षण किये जाने पर खेती में प्रयोग किये जा सकने की प्रबल संभावना है।
कीटनाशक अवशेषों पर अखिल भारतीय नेटवर्क परियोजना की स्थापना संभाग द्वारा किये गये अनुसंधान से प्राप्त डाटा एवं सुझावों के आधार पर की गई है। संभाग द्वारा वर्ष 1987 में सोसायटी ऑफ पेस्टिसाइड साइंस इंडिया की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय संभाग परिसर में ही स्थित है। यह सोसायटी पिछले 37 वर्षों से पेस्टिसाइड रिसर्च जर्नल का प्रकाशन कर रही है। अंतर्राष्ट्रीय निर्यात एवं घरेलू प्रयोग हेतु उत्पादित कृषि उपज में कृषि रसायनों के विश्लेषण एवं आंकलन हेतु पहली एनएबीएल मान्यता प्राप्त कीटनाशक रेफरल प्रयोगशाला की स्थापना संभाग द्वारा करी गई। यह प्रयोगशाला न केवल उच्च कोटि का कीटनाशी अवशेष विश्लेषण प्रदान करती है अपितु इस क्षेत्र के संवर्धन हेतु उत्कृष्ट मानव संसाधन को प्रशिक्षित करने का कार्य भी करती है। इसके अतिरिक्त संभाग ने राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (एनबीबी) से प्राप्त वित्तीय सहायता से शहद परीक्षण प्रयोगशाला भी स्थापित की है, जोकि शहद की गुणवत्ता एवं प्रामाणिकता का परीक्षण करने हेतु सभी आवश्यक एवं अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हैं।
संभाग ने अपनी स्थापना से ही विपुल मात्रा में उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान पत्रों के प्रकाशन का कार्य निरंतर रूप से किया है, इसके अतिरिक्त संभाग ने महत्वपूर्ण मात्रा में बौद्धिक संपदा (50 से अधिक राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट) भी प्राप्त किये है। विज्ञान के क्षेत्र में संभाग का योगदान राष्ट्रीय महत्व की संस्थाओं (आईएनएसए, एनएएएस, आईसीएआर, एनएएएस, एनआरडीसी, आईसीएफआरई, रसायन और उर्वरक मंत्रालय, आदि) द्वारा संभाग के वैज्ञानिको को दी गई फ़ेलोशिप एवं पुरस्कारों के माध्यम से परिलक्षित होता है। इसके अतिरिक्त अपनी अनुसंधान गुणवत्ता के चलते संभाग समय-समय पर राष्ट्रीय एजेंसियों (डीबीटी, डीएसटी, एनएटीपी, एनएआईपी, एनएफबीएसएफएआरए, एनबीबी) एवं अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों (पादप उत्पादों पर डीबीटी-सीडीटीआई द्वारा वित्त पोषित इंडो-स्पैनिश परियोजना) से अनुसंधान निधि प्राप्त करता रहता है।
संभाग को संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय स्रोत निर्देशिका में पर्यावरण संबंधी जानकारी के स्रोत के रूप में पंजीकृत किया गया है। संभागीय प्रयोगशालाएँ उन्नत उपकरणों से सुसज्जित है जिनका प्रयोग अनुसंधान, शिक्षण एवं अन्य संबंधित सेवाएं प्रदान किये जाने में किया जाता है। वर्ष 1989 में संभाग को कृषि रसायन में स्नातकोत्तर एवं डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान करने हेतु स्वतंत्र शिक्षण अनुशासन का दर्जा दिया गया। तभी से संभाग अपने उच्च कोटि के शिक्षण के माध्यम से भारतवर्ष में कृषि रसायनों के क्षेत्र में कार्य करने हेतु उत्कृष्ट मानव संसाधन सृजन के लिए निरंतर प्रयत्नशील है।
Development of agrochemicals from natural and synthetic resources
Agrochemical formulation, research and development
Safety evaluation of plant protection schedules on agricultural crops
Develop human resource of excellence